मुसलमानों पर जुल्म की दस्तानों को रक्म करने का सिलसिला नया नहीं बल्कि बहुत कदीम (पुराना) है | इस कौम की अजमाइश के लिए हर दौर मे वक़्त का फिरऔन पैदा होता रहा है और मुसलमानों को अपने जुल्म का निशाना बनाता रहा है |
लेकिन तारीख भी शाहिद है कि फिरऔन हमेशा अपने मकसद में नाकाम रहा है ख्वाह उसने कितनी भी जुल्म की दस्ताने कौम पर रक्म की हों , उसे अपनी फ़ौज के साथ हमेशा दरिया-ए-नील में गर्क होना पड़ा है ख्वाह वो कितनी भी बड़ी सल्तनत का मालिक हो |
अगर मैं कहूँ कि वक्त का फिरऔन आज मुसलमानों पर अपनी फिरऔन यलगार कर रहा है और कौम को जुल्म का निशाना बना रहा है तो बुरा न होगा |
आज दुनिया का कोई भी मुल्क हो हर मुल्क में ये फिरऔनी यल्गारें मुसलमानों पर जुल्म की तारीख रक्म करने की कोशिस में मुब्तिला हैं |
कहीं और जाने की जरूरत नहीं है आप इस फिरऔनी जहनियत से इस मुल्क में ही अशना हो सकते हैं ! ये लव जिहाद के मसले पर मुसलमानों को जुल्म का निशाना बनाना, इंडियन मुजाहिदीन नाम की एक तंजीम बना कर बेकुसूर मुसलमानों को जुल्म की दलदल में धकेल देना, इक्तिदार (सत्ता) की कुर्सी पर काबिज होते ही मुसलमानों पर जुल्म की तारीख को रक्म करना फिरऔनी यलगार ही तो है ये वक्त के फिरऔन ही तो हैं जो मुसलमानों को अपने जुल्म का निशाना बना रहे हैं आज अगर मुसलमानों को लव जिहाद जैसे नापाक मौजू (मुद्दे) पर जुल्म का निशाना बनाया जा रहा है तो उसमे कोई नई बात नहीं है ये ठीक उसी जहनियत के जरिये लायी गयी तंजीम इंडियन मुजाहिदीन जैसा ही है जिसका कोई वजूद नहीं !
मुसलमानों की तारीख ही कुछ ऐसी रही है कि हर दौर में उन्हें जुल्म का मुकाबला करना पड़ा है |
कितनी अजीब बात है जिस मजहब-ए-इस्लाम ने एक पराई औरत पर नजर डालने से मना किया जिस मजहब ने एक औरत को गलत नज़रों से देखना आँखों का जिना (व्यभिचार) करार दिया जिस मजहब ने औरतों और मर्दों को हुक्म दिया कि अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें और शादी से पहले एक मर्द एक औरत को और एक औरत एक मर्द को हाथ न लगाये ,जिस मजहब ने इस्लाम की तबलीग (प्रचार) के लिए गलत तरीकों को अपनाने को हराम करार दिया आज उस मजहब पर वो लोग लव जिहाद का इल्जाम आयद कर रहे हैं जोकि खुद अपनी औरतों को उनके शौहर की मौत पर जिन्दा जला देते हैं जो नियोग जैसे नापाक अमल को सही करार देते हैं और कहते है औरत नापाक है !
मैं किसी मजहब की तह में नहीं जाना चाहता वरना कलम चलाना मुझे भी आता है आपका कलम भले ही कुछ लिख कर ख़ामोशी इख्तियार कर लेता हो लेकिन मेरे कलम का अंदाज कुछ मुखतलिफ ही है !
कितनी अजीब बात है जिन्हें अरबी जुबान का इल्म नहीं वो आज कुरआन की तशरीह (व्याख्या) कर रहे हैं जिन्हें कुरआन की तारीख (इतिहास) का और कुरआन के फरमानों का इल्म नहीं वो दुनिया को कुरआन की तालीमात के बारे में बता रहे हैं कि देखिये इस्लाम कैसी तालीम देता है !
खामियां वही लोग तलाश करते हैं जो खुद खामियों का शिकार होते है और जब ऐसे शख्स खामियों की तलाश में नाकाम हो जाते है तो वो लफ़्ज़ों के गलत मायने तलाश कर उस चीज की शक्ल को मजरूह (जख्मी) करने की कोशिस करते हैं यकीनन इन संघी जहनियत के लोगों कि शाजिशें इसी लिए तो है कि लोग इस मजहब से नफरत करे और जिसके बिना पर इस मुल्क में फिरकापरस्ती का माहौल बनाया जा सके और हकीकत तो ये है कि संघी जहनियत के अलमबरदार इस्लाम की मकबूलियत से खौफज़दा हैं !
तारीख शहीद है कि इनके मंसूबे हमेशा नाकाम हुए हैं और ये एक फितरी अमल भी है कि हक के आगे नाहक हमेशा नाकाम ही होता है ,आज मुसलमानों को और इस्लाम को मिटाने की कितनी भी कोशिस की जाये लेकिन हकीकत तो ये है कि वजूद-ए-इस्लाम से ही दुनिया कायम है !
लेकिन इन सभी सूरतेहाल के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार है कि जो आज मुखाल्फीन हम पर जुल्म की तारीख रक्म कर रहें हैं कल जब अल्लाह से हमारा ताल्लुक था और हम इस्लामी तालीमात के मुताबिक जिंदगी गुजारने वाले थे तो ये यल्गारें खुद ब खुद खामोश हो जाया करती थी इनमे वो हिम्मत नमूदार ही न होती थी कि ये हमारा मुकाबला कर सकें.
जब इस्लाम जिंदगी में था तो नील के साहिल से लेकर तब्खा तक हमारा परचम लहराता नजर आता था, लेकिन आज जब हमारी जिंदगी से इस्लामी तालीमात की अहमियत निकल गयी तो बताने की जरूरत नहीं कि हालात ने हमे किस मोड़ पर लाकर छोड़ा है.मुसलमानों के लिए ये दौर यकीनन जहमत और अजमाइश भरा दौर है , हर जगह मुसलमानों को एक मुन्ज्ज्म शाजिश के तहत कत्लेआम किया जा रहा है लेकिन ये तारीख हमेशा हर दौर के मुसलमानों से वाबस्ता रही है
क्यूंकि – इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद
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