ऐसी चिंताओं के बावजूद स्टार्ट-अप के क्षेत्र में चहल-पहल रहती हैं । संस्थापकों, फंडिंग और बिजनेस आइडिया से जुडी मीडिया कवरेज से इसे और बल मिलता है ।
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| Aditi Sheshadri |
भारत के सबसे पुराने सोशल उद्यम इनक्यूबेटरों में से एक विलग्रो को मार्केटिंग व कम्युनिकेशन हैड
अदिति शेषाद्रि का मानना है कि स्टार्ट अप कल्चर में एक ऐसा आकर्षण है जो युवा महिला पुरुषों को आकर्षित करता है । ठीक है कि बहुत से युवा स्थापित कंपनी में काम करना पसंद करते हैं । लेकिन स्टार्ट-अप भी नई उम्मीदों और अपेक्षाओं वाले युवाओं को भा रहे है ।
वत्सल गोयल ने 'अच्छे-खासे वेतन वाली नौकरी छोड़कर माता-पिता की जरूरतों पर केंद्रित आनलाइन स्टार्टअप नर्चरी में काम tकरना शुरू किया था । वे अपना अनुभव बताते हैं, " हमारा कोई दफ्तर नहीं है, स्टाफ में भी बहुत कम लोग हैं, लेकिन मुझे यह काम पसंद है और इसके संस्थापक पर मुझे बहुत भरोसा है । वे युवा हैं और उनके पास एक विजन है जो मुझे बहुत भाता है । असल में मैं उनके साथ काम करने वाले शुरुआती कर्मचारियों में से एक हूं । भारत में कंपनी ऑपरेशन भी मैने ही शुरू किए । यह वहुत अच्छा अनुभव रहा जो मुझे कहीं और नहीं मिला । इससे मुझे जॉब संतुष्टि भी खूब मिलती है । हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह अनुभव आगे बहुत काम आएगा ।'
वत्सल गोयल के शब्द संभवत: हर उस युवा को मानसिकता को परिलक्षित करते है जो स्टार्टअप कल्चर की और आकर्षित है । कुछ तो अनुभव लेकर बेहतर नौकरी की उम्मीद कर रहे है तो अन्य यहां के अनुभव लेकर अपना उद्यम शुरू करना चाह रहे हैं ।
आईआईटी रूड़की और आईआईएम रांची से पढे अंकुर गुलाटी का कहना है, ' 2०1 3 में हायर एजुकेशन पूरी करने के बाद मैंने बिजनेस प्रक्रिया और अनुभव हासिल करने के लिए कई स्टार्ट-अप में काम किया । इस अनुभव से अपना स्टार्टअप वेलफी शुरू करने में मदद मिली ।
शुरुआत
औद्योगिक संस्था नासकॉम की 2015 को एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्टार्ट-अप का केंद्र बन गया है और विश्व स्तर पर यह तीसरे नंबर पर है । हर साल 4, 000 नए व्यवसाय शुरू होते है । जहाँ कुछ स्टार्ट-अप अनुभवी प्रोफेशनलों द्वारा शुरू किए जाते हैं, वहीं बहुत से स्टार्टअप कैंपसों में अनुभवी इनक्यूबेटरों के मार्गदर्शन में जन्म लेते है । छात्रों के संभावना से भरपूर उद्यमों क्रो प्रोत्साहित करने वाला स्टार्टअप विलेज ऐसा ही वेंचर है ।
आईआईटी बम्बे, आई आई एम अहमदाबाद, बिट्स पिलानी और इंडियन स्कूल आँफ बिजनेस जैसे संस्थानों के अपने आँन कैंपस इनक्यूबेटर हैं।
इनक्यूबेटर और एक्सेलेटर स्टार्ट अप ईको सिस्टम को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर उन छात्रों को जो अपना उद्यम शुरू करना चाहते हैं । शेषाद्रि का कहना है कि ऐसी मदद मिलना भी छात्रों के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का काम करती है, इससे उनका आत्मविश्वास बढता है परिवारों अपने विचारों के प्रति आश्वस्त करने में मदद मिलती है । लेकिन एक कम्पनी को वजूद में लाना खासा कठिन काम है तो उसे पोषित कर आगे बढाना और कठिन । कपनी के लिए पैसा जुटाना और उसका समुचित उपयोग सुनिश्चित करना, योजना बनाना, उसका क्रियान्वयन करना और बिजनेस को आगे बढाना जैसी ढेरों चुनौतियां हैं, जिन पर काम करना होता है । शेषाद्रि बताती हैं, 'विलग्रो में हम संस्थापकों में खास दिलचस्पी लेते हैं क्योंकि यदि संस्थापक में डटे रहने का माद्दा, धैर्य और व्यवसाय को संभालने की परिपक्वता नहीं है तो कोई आइडिया कितना ही अच्छा क्यों न हो, स्टार्ट-अप नाकाम भी रह सकता है।
अपनी कम्पनी शुरू करना आकर्षक विचार हो सकता है, लेकिन कडी मेहनत करने ही इच्छाशक्ति, दृढता और चुनौतियों से निबटने के लिए "मैं यह कर सकता हूं' के जज्बे की भी जरूरत होती है । भले ही आप खुद बॉस हो, लेकिन आपको कोई छुट्टी नहीं मिलती । आपको निवेशकों और अपने उत्पाद के ग्राहकों को जवाब
देना होता है । इसमें सफल होने के लिए जुनून और व्यवहारिकता की जरूरत होती है । आपका अपने बिचार से जुडे सभी पहलुओं पर गहराई से गौर करना जरूरी होता है और उस पर पूरी तरह भरोसा होना उससे भी कहीँ अधिक जरूरी होता है ।