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| लॉवेल सन् |
प्रिय दोस्तों हमें बेहद ख़ुशी है की आप सब ने इसकी पिछली 2 कड़ियों को खूब सराहा इसके लिए आप सब का धन्यवाद, हमने अपनी पिछली कड़ी में पढ़ा नागार्जुन सोना बनाने की विद्या में एक महत्वपूर्ण नाम होता है। नागार्जुन की ख्याति भारत से बाहर तिब्बत और चीन में फैली होती है उन्हें देवी का वरदान प्राप्त होता है। जिससे वो पारा और चांदी से सोना बनाने की विद्या का प्रयोग कर सकते हैं और इसके अलावा हमने पड़ा कि कुछ ठग कीमियागर होते हैं, जो सोना बनाने की कला का ढिंढोरा पीटकर अच्छी खासी रकम इकट्ठा कर लेते हैं। लेकिन वे सोना किस प्रकार बनाते थे, और लॉवेल कौन था और वह किस तरह से जादू ,शैतानी शक्तियों और जड़ी,बूटियों का इस्तेमाल करके सोना बनाता था ।यह सब हम इस कढ़ी में पढ़ेगें, यह हमारी सोना बनाने की विधि का रहस्य की आखिरी कड़ी है।
अब आगे.................
कीमियागर किस तरह से परा और सीसा से सोना बनाते थे:-
प्रश्न उठता है कि आखिर प्रदर्शन के दौरान कीमियागर कैसे सोना बना देता था? बात दरअसल यह होती थी कि कीमियागर शीशे की छड के एक सिरे को थोड़ा खोखला कर लेता था और उसमें पहले से थोड़ा सा सोना रख देता था और छका मुंह मोम से चिपका दिया करता था। खोखले सिरे को वह चिराग की लौ से काला कर देता था, ताकि पहले से छिपाया हुआ सोना दिखाई ना पडे। पारे और 'गुप्त चूर्ण' को गर्म बर्तन में हिलाते समय मोम पिघल जाता और सोना निकलकर पात्र में आ जाता था। पारा तो भाव बनकर उड़ जाता था और बच रहता था सोना इस प्रकार चतुराई से सोना बनाने का प्रदर्शन कीमियागर लोगों को मुर्ख बनाते और अपने 'गुप्त चूर्ण' (जो प्रायः खाया शीशा हुआ करता था) अच्छी कीमत वसूलते।
अपने यहां सिद्ध तांत्रिकों ने इस मिथ्या विद्या को विकसित किया तो पाश्चात्य जगत में यूनानी दार्शनिकों से प्रभावित होकर लोगों ने सोना बनाने के लिए ऊल जुलूल हरकतें की। मिश्र धातुओं के बनने के दौरान कभी हल्का पीला रंग या कभी सफेदी आ जाती तो वह उसे सोना चांदी बताकर पैसा ऐंठते और फिर चलते बनते।
लॉवेल सन् का जन्म :-
सोना बनाने के लिए अजीब गरीब और अमानवीय कृत्य सिर्फ
भारत की धरती पर ही नहीं, सारी दुनिया में होते रहे थे। 15 वी सदी में
गिलीज द लॉवेल नामक एक ऐसा स्वर्ण पिपासू व्यक्ति हुआ था, जिसके
अपराध और सनकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। लावेल सन् 1420 के आसपास ब्रिटनी के एक कुली परिवार में पैदा हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद वह विचार संपदा का वारिस बना।वह खूबसूरत, शिक्षित और कई मायने में विलक्षण था। चार्ल्स सप्तम के युद्ध में उसने अपना कौशल दिखाया था, जिसका पुरुस्कार उसे एक रियासत और 'मार्शल ऑफ़ फ्रांस' जेसी उपाधि के रूप में मिला। वह अपने रहने के तौर तरीकों मैं बेहद शाहखर्च था। महत्त्वकांछी तो वह था ही।
23 साल की उम्र में:-
जब वह 23 साल का हुआ तो बहुत बड़ी जायदाद की वारिस कैथरीन से उसकी शादी हुई। इस शादी के बाद तो वह और अधिक शहखर्च हो गया, आंगन में ब्रिटेन के शूरवीरों और संभ्रांत जनों की हर हफ्ते दावत करता महफिले जमती और नाच गाने के आयोजन होते। उसकी जिंदगी एस और मस्ती की रंगीनियों में डूबती चली गई।
बेहद लापरवाही और खर्चीलेपन के कारण लॉवेल को अपनी रियासत तक बेचने की नौबत आ गई। ब्रिटनी के ड्यूक से कुछ कीमती जमीन का सौदा भी हो गया था। पर उसकी पत्नी ने चार्ल्स सप्तम के दरबार तक मामला पहुंचा दिया और बिक्री रुक गई।लॉवेल के शहखर्च के सारे रास्ते बंद कर दिए गए। मार्शल होने के नाते उसे थोड़ा भत्ता अवश्य मिलता था, जिससे उसके खर्चों का दसवां हिस्सा भी पुरा न पड़ता। लेकिन अपनी आदतों से लाचार विलासी लॉवेल अपने घुड़सवारों, विदूषकों,नर्तकियों और गायकों को कैसे छोड़ सकता था।
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सोना बनाने की विद्या और पारस पत्थर:-
धन प्राप्त करने के लिए अब उसका झुकाव 'अलकैमी' यानी किमियांगरी की ओर हुआ। वह लोहे से सोना बनाकर ब्रिटनी के कुलीन में फिर से प्रतिष्ठित होना चाहता था।
उसने इस विद्या के गुड़ियों को अपने यहां बुलाया। उसे रोजर नामक एक सहायक भी मिल गया। वही उसकी शनकों और घिनोने आनंद का साथी बना। रोजर ने लावेल की मुलाकात प्रेलाती नाम एक किमियागर और एक डाक्टर से कराई जिसकी इस विद्या में पहले से गहरी रुचि थी। फिर क्या था, एक शानदार प्रयोगशाला स्थापित की गई। तीनों ने मिलकर तथाकथित
'फिलॉस्फर्स स्टोन' पारस पत्थर की खोज भी शुरू की। सोना बनाने का यह अभियान एक वर्ष तक चलता रहा और इस समस्त अभियान का खर्चा लॉवेल ही देता रहा।
लॉवेल की कोठी में समय-समय पर और भी किमियागर यूरोप के कोने-कोने से आते रहे। महीनों तक बीसियों कीमियागर एक साथ जुट कर तांबे से सोना बनाने का प्रयास करते रहे ज्यूँ ज्यूँ अवधि आगे खींचती गई, लॉवेल अपना धैर्य खोता गया। क्रोध में आकर अचानक उसने सभी को निकाल बाहर कर दिया ।हां रेलाती और डॉक्टर अब भी उसके साथी बने रहे।
शैतान की पूजा:-
डॉक्टर ने लॉवेल को अपने विश्वास में लेते हुए बताया कि शैतान महान है और वह कई गुप्त विद्याओं का स्वामी है । उसने यह भी वादा किया कि वह शैतान से लॉवेल का संपर्क करा देगा। इस चक्कर में आधी रात को वे पास के जंगल में गए। वहां डॉक्टर ने एक जादुई घेरा खींचा और 'अंधेरे के राजकुमार' (शैतान) के निमित्त लगातार कई क्रियाएँ की। बीच-बीच में ऐसी हरकतें करता,जैसे वह किसी से आमने सामने बात कर रहा हो। यहां भी अंततः लॉवेल का धैर्य जवाब दे गया। लॉवेल ने खींचकर ढोंग बंद करा दिया। फिर डॉक्टर ने उसे समझाया कि चीते के रूप में दुरात्माओं के स्वामी ने उसे संदेश दिया है कि तुम स्पेन और अफ्रीका जाकर खास जड़ी बूटियों ले आओ, जो अंयत्र नहीं मिलती है और जिनके रसायन से सोना बनाया जा सकता है। लॉवेल ने फ़ौरन उस डॉक्टर को प्रर्याप्त धंन देकर जड़ी-बूटी लाने भेज दिया और फिर वह डॉक्टर कभी लोटा ही नहीं।
बच्चों की बाली:-
इसके बावजूद लॉवेल की सोना बनाने की भूख इतनी तीव्र थी कि वाह पागलपन से बाज नहीं आया। अब वह
शैतान की अराधना के नाम पर क्रूरतम अपराध करने लगा। इटालियन किमियागर रेलआती फिर उसका सहयोगी बना लेकिन उसने शर्त रखी कि इस बार सोना बनाने के इस अभियान में लॉवेल अपनी टांग नहीं अडाएगा और चुपचाप जरुरत की हर चीज उसे जुटाता रहेगा।
इस गुप्त अभियान की अवधि में बालक और बालिकाओं के गायब होने की घटनाएं घटने लगी और अफवाहें फैलने लगी। अंत: तक चर्च को दखल देना पड़ा। मामले की छानबीन के लिए चार जजों की समिति गठित की गई। लॉवेल मुजरिम करार दिया गया उस पर न्यायधीश ने जादूगरी, अप्राकृतिक यौनाचार और बालक बालिकाओं की हत्या के अभियोग लगाए।
लॉवेल को मृत्युदण्ड:-
अब यह प्रमाणित हो गया था कि लॉवेल अपने उन्मादी आनंद और सोना प्राप्त करने के लिए अबोध बच्चों को गायब करके अमानवीय क्तियों के बाद उनकी हत्या कर देता था। प्रेलती ने न्यायधीशों से छम्मा याचना करते हुए लॉवेल सेन के सारे रहस्य खोले और फिर लॉवेल ने स्वयं भी स्वीकार किया की उसने 3 साल के दौरान उस इलाके के लगभग 100 अबोध बच्चों की बली चढ़ा दी थी। वह बच्चों की बलि चढ़ाकर शैतान को खुश करना चाहता था, जिससे कि प्रशन्न होकर शैतान उसे 'फिलास्फ़र स्टोन' का रहस्य बता दे और फिर वह सोना बनाकर संपन्नता प्राप्त कर ले।
27 अक्टूबर 1440 को लॉवेल को मृत्यु दण्ड दे दिया गया था । तथाकथित सोना बनाने की विद्या का रहस्य जानने और सोना बनाने के चक्कर में दिल दहला देने वाले अपराधी का अंत हुआ। बाद में रसायन विज्ञान की प्रगति के साथ किमियागर की पोल खुलती गई और धीरे-धीरे सदियों से चला आ रहा यह पागलपन का दौर समाप्त हुआ।
।।।।समाप्त।।।।
दोस्तों हमें आशा है की आप को यह सोना ढूढने की विद्या का रहस्य की आखरी कड़ी भी काफ़ी पसंद आई होगी। अभी तक आने ऐसी घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं जब लोग समूहों अथवा अकेले अचानक धरती से गायब हो गए हैं जीवित लोग तो जीवित लोग एक गांव की तो सारी कब्रों के मुर्दे भी गायब हो चुके हैं क्या वजह है की धरती से लोग गायब हो जाते हैं,क्या यह कोई अदृश्य शक्ति है या फिर कोई बहरी दुनिया का प्राड़ी?जानते हैं एक नए रोमांचक और रहस्यमय अनसुलझे रहस्य में। इसलिए हमारे साथ बने रहिए और हमारी पोस्ट को Facebook,Twitter,Linkedin,Pinterest आदि सोशल नेटवर्किंग साइट पर जरुर शेयर करें और कमेंट में हमें अपने विचार जरुर दें कि आपको यह पोस्ट कैसी लगी।मिलते हैं एक नए रहस्य में।
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