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| सोना बनाने का कारखाना |
प्राचीन काल से लेकर आज तक सोने gold के प्रति मनुष्य के मन में जबरदस्त आकर्षण व रहस्य रहा है। अन्य धातुओं से सोना बनाने के नाम पर कुछ चालाक लोग सदियों से लोगों को बरगलाते रहे। पारस पत्थर की खोज में अनगिनत लोगों ने अपने जीवन नष्ट destroy कर दिए ।कुछ लोग मानते हैं कि कीमियागर engineers ने सोना बनाने की विद्या में सफलता पा ली थी।सोना gold बना हो या ना बना हो पर इस सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता की इन्हीं तर्कहीन खोजो में लगे कीमियागर होने ही आधुनिक रसायन शास्त्र की आधारशिला रखी।
रजा विक्रमादित्य के समय-
राजा विक्रमादित्य के समय में उज्जैन नगर में व्याडि नामक एक व्यक्ति रहता था । वह रसायन विद्या की खोज परख में इतना डूब गया, कि उसने अपने संपत्ति तो संपत्ति अपना जीवन तक भी नष्ट कर डाला था । अपना सब कुछ गवा देने के बाद उसे इस विद्या में घोर घृणा हो गई।
वेश्या ने रह दिखाई-
एक दिन वह शोकमग्न नदी के किनारे बैठा था उसके हाथ में भेषज संस्कार ग्रन्थ था,जिसमें से वह अपने शोध के लिए व्यवस्था पत्र लिखा करता था। निराशा से उत्तेजित हो करवा एक एक पत्रकार कर जल में फेकने लगा उसी नदी के किनारे व्याडि से कुछ दूरी पर प्रवाह की दिशा में एक वेश्या बैठी थी उसने पत्रों को बहते देखकर उनमें से कुछ को जल से बाहर निकाल लिया व्याडि की दृष्टि उस पर तब पर जब पुस्तक के सारे पत्र पहाड़ कर नदी में फेक चुका था तभी वह औरत उसके पास आई और पुस्तको फॉर डालने का कारण पूछा।
व्याडि ने उत्तर दिया, "क्योंकि मुझे इस से लाभ नहीं हुआ। मुझ मुझे वन चीज नहीं मिली जो मुझे मिलनी चाहिए थी। मेरे पास प्रचुर धन था,पर इस विद्या के कारण मेरा दिवाला निकल गया।सुख प्राप्ति की आशा में कठिन परिश्रम और खोज के बाद अंततः मुझे दुःख और निराशा ही मिली। इसलिए मुझे इस विद्या से ही गृडा (नफरत) गई है।
यह सुनकर वह औरत बोली, "उसको मत छोड़ो,जिसमें तुमने अपना जीवन लगा दिया है।जो सत्य हैं, उस पर आपको संदेह नहीं करना चाहिए।ऋषयों का ज्ञान मिथ्य नहीं हो सकता।आप की कामना की सीमित मैं जो बाधा है वह संभवता किसी सूत्र विशेष को ढंग से ना समझ पाने के कारण है ।कोशिश करने पर वह बढ़ा निश्चय ही किसी ना किसी दिन दूर हो जाएगी। मेरे पास बहुत साधन है, जिसका मेरे पास कोई उपयोग नहीं है आप धन ले लें और पुनः प्रयास करें सफलता अवश्य मिलेगी।"
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प्रोत्साहन पाकर व्याडि के मन में पुन: आशा का संचार हुआ।वाह वेश्या से धन लेकर पूनः रसायन विद्या के रहस्य की खोज में जुट गया ।दरअसल वह सोना बनाने की रासायनिक विधियों की खोज कर रहा था ।रसायनों से सोना बनाने के विषय में उन दिनों अनेक रोचक रोमांचक दंत कथाएं प्रचलित थी। प्रसिद्ध विद्वान एवं इतिहासकार अलबरूनी ने व्याडि
और विद्या का उल्लेख करते हुए लिखा है:-
" इस प्रकार की पुस्तकें पहली के रूप में लिखी हुई हैं।इसलिए व्याडि से एक औषधि की व्यवस्था पत्र का एक शब्द समझने में भूल हो गई। उस शब्द का अर्थ यह था कि इसके लिए तेल और नर रक्त दोनों की आवश्यकता है । वह शब्द 'रक्तामल' human blade था जिसका अर्थ उसने लाल आमल (आंवल) समझा"।
भूल का परिणाम-
" जानते हैं, इस भूल का क्या परिणाम हुआ ? जब व्याडि ने औषधि का प्रयोग किया तो उसका कुछ भी असर नहीं हुआ। तब वह बेचेन होकर विविध औषधियां पकाने लगा इस क्रिया में अग्नि शिखा उसके सिर से छू गई और उसका सिर जल गया । इसलिए उसने अपनी खोपड़ी पर बहुत सा तेल डाल लिया उसको उसने मला फिर वह किसी काम के लिए भट्टी के पास से उठकर बाहर जाने लगा ।उसके सिर के ऊपर छत में एक कील बाहर को निकली हुई थी,उसका सिर उसमें लगा और और रक्त बहने लगा पीरा होने के कारण व नीचे की ओर देखने लगा। उससे तेल के साथ मिले रक्त की कुछ बूंदें उसकी खोपड़ी से निकल कर देगची में गिर पड़ी ।लेकिन व्याडि ने उन बूंदों को गिरते नहीं देखा, फिर जब देगची में रसायन पक गया तो उसने और उसकी पत्नी ने परीक्षा करने के लिए रसायन अपने शरीर पर मल लिया। इस क्रिया से आश्चर्यजनक पतिक्रिया उत्पन्न हुई जानते हैं, क्या हुआ? वे दोनों हवा में उड़ने लगे।"
" राजा विक्रमादित्य अविश्वसनीय घटना को सुनकर अपने मेहल से बाहर निकले और अपनी आंखों से उन्हें देखने के लिए प्रांगण में आ गए। राजा को देखते ही उड़ते हुए व्याडि ने आवाज़ लगाई,"मेरी और देखते हुए मुंह खोलो राजा ऐसा क्यों करते उन्होने मुंह नहीं खोला।व्याडि के मुंह में जो कुछ भरा हुआ था , जिसे वह थूकना चाहता था। उसने उड़ते उड़ते जो थूका वह महल के प्रवेश द्वार के पास गिरी। आश्चर्य की दुआर के पास जो वस्तु गिरी व खरे सोने के रूप में थी।"
ऐसी ही अनेक स्वर्ण विद्या, यानी कि किमियांगिरी को लेकर प्रचलित रही हैं। इन्ही कथाओं और रसायन शास्त्र की स्वर्ग विद्या से संबंधित भ्रामक उल्लेखों ने रहस्यमय एवं अनोखा आकर्षण उत्पन्न कर रखा था। भारत ही क्या दुनिया के तमाम हिस्सों में प्राचीन काल से सोने के प्रति अत्यधिक मोह रहा है।अन्यधातुओं से सोना बनाने के नाम पर कुछ चलाक लोग अपनी कला से चमत्कार कर लोगों को बरगलाते रहे। समाज के धनिक लोग सोना प्रात खाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे।
जरा सोचिए सोने के प्रति लोगों के मन में कितना जबरदस्त आकर्षण था कि वे इसके लिए अपने बच्चों तक की बली चढ़ा देने से नहीं हिचकते थे।
अलबरूनी के अनुसार-
अलबरूनी ने ही एक अन्य स्थान पर लिखा है: "सोना बनाने के लिए मूर्ख राजाओं के लोभ की कोई सीमा नहीं ।यदि उन में से किसी एक को सोना बनाने की इच्छा हो और लोग उसे या परामर्श दें कि इसके लिए कुछ छोटे-छोटे सुंदर बालकों का वध आवश्यक है तो वे राक्षस यह पाप करने से भी नहीं रुकेंगे, वे उन्हें जलती आग में फेंक देंगे। क्या ही अच्छा हो, यदि विद्या को पृथ्वी की सबसे अंतिम सीमा से दूर ऐसे स्थान पर रख दिया जाए, जहां से इसे प्राप्त करना नामुमकिन हो।" वैसे यह सत्य है कि सोना बनाने की सारी संभावनाएं और तर्कहीन खोजें ही आधुनिक रसायन शास्त्र का आधार बनीं। पारस पत्थर को सोना बनाने की कल्पना भी अत्यंत रोमानी थी लेकिन सदियों तक भटकने के बाद भी किमीयागरों को पारस पत्थर नहीं मिला।
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